Thursday 3 October 2019

धर्म और विज्ञान (एक दूसरे के पूरक नही है)

"धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक नही है!"

विज्ञान परिवर्तनशील है रोज आविष्कार हो रहे है! विज्ञान जमीन से आसमान तक रोज मेहनत कर रहा है ताकि मानव जीवन सुखमय बन सके! तर्क,आंकड़े, प्रयोग,विश्लेषण ,अवलोकन,तकनीकी से रिजल्ट तक पहुच रहा है। विज्ञान रोज चौबीसों घंटे कुछ न कुछ कर रहा है जबकि धर्म जड़ है सैकड़ो वर्ष पहले लिखे गए जब न विज्ञान था न इंटरनेट था! आज जड़ हो चुके धर्म और धर्मग्रंथो का कोई औचित्य नही, टोटली आउटडेटेड हो चुके है , धर्म रोज अंधविश्वास बढ़ा रहा है नवाचार को शामिल नही कर रहा, धर्म के कारण इंसान अन्धविश्वासी,तर्कहीन,परिवर्तनशील विज्ञान का विरोधी और धार्मिक कुण्ठित ,जातिवादी ,कट्टर साम्प्रदायिक मानशिक रोगी होते जा रहा है। उस साधनहीन जमाने मे लिखी गयी बात आज के दौर में कोई काम की नही है, जबकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है ! चार्ल्स डार्विन ने कहा था जो प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के थपेड़े सह जाएगा वो अपना अस्तित्व बनाये रखेगा ,उसे जीवित रहने के लिए अपने आपको समयानुकूल ढालना ही होगा वरना उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा! धर्म और धर्मग्रंथ अपने मे कोई परिवर्तन नही चाहते हा अगर धर्म भी अपने आपको परिवर्तनशील कर ले तो परिवर्तन के साथ जीवित रहेंगे वरना इंटरनेट की इस दुनिया के रहते धर्म आने वाली सदी का ऊगता सूरज नही देख पाएगा, और अंधभक्त बरसाती कुकरमुत्ते की तरह साफ हो चुके होंगे।
✍️ राजेश बकोड़े

Monday 5 August 2019

नागपंचमी

#नागपंचमी

विज्ञान के अनुसार सांप कभी दूध नही पीता दरसल जीभ की दो हिस्सों वाली बनावट के कारण ऐसा होता है उनसे दूध पीते नही बनता, और धोके से पी भी लिया तो वो बीमार पड़ जाता है क्योंकि सर्प कैल्शियम ( दूध में कैल्शियम होता है) को पचा नही पाता! अब कुछ लोग कुतर्क देंगे कि में सबूत प्रस्तुत कर सकता हूं कि सर्प दूध पीते है! बेशक पीते है जब सपेरा उन्हें कई कई दिनों तक भूखे प्यासे रखते है तो और दूध के सिवाय कुछ खाने पीने को नही देते! स्पष्ट है कि दूध सर्प का नेचुरल फ़ूड नही है ।

अब सवाल ये है भेड़चाल लोग तो नागपंचमी को नाग को दूध पिलाते ( दरसल नाग को नही पत्थर को दूध पिलाते है) ही है तो कभी सोचते नही क्या? क्योंकि उनके धर्मग्रंथो में ऐसा लिखा है और धर्मग्रंथो में ऐसे ही अतार्किक,अवैज्ञानिक बातो का उल्लेख है जिसे सत्य की तरह प्रस्तुत किया जाता है, दरसल सेकड़ो वर्ष पहले लिखे गए धर्मग्रंथ आज की डेट में पूरी तरह से आउटडेटेड हो चुके है उनमें लिखी कोरी गप्पो को विज्ञान ने पोल खोल के रख दिया है ,हालांकि अब धर्म रक्षक ( पुजारी,पंडे, मौलाना,पादरी) अपने धर्मग्रन्थों खुलती पोल को बचाव की स्थिति में लाने के लिए धर्मग्रंथो को विज्ञान से कोरिलेट करने की अधूरी कोसिस में लगे हुए है। हालांकि भक्त धर्मग्रंथो में लिखी कोरी  गप्प को चुपचाप असेप्ट करते है जो भी धर्मग्रंथो में लिखा है उसमे  तर्क या सवाल उठाने की मनाही है बस अनुसरण करो , दिमाग होते हुए भी बिन दिमाग लगाए ऐसी पाखंडो को ढोने वाले आस्तिकों को सच से अवगत कराने पर उनकी आस्था/ भावनाए आहत हो जाती है , लेकिन दुनिया तो आस्था से नही चलती न, अगर आपकी कमजोर आस्था आहत होती है तो होने दो लेकिन यूनिवर्सल ट्रुथ को झुठलाया तो नही जा सकता न???
#मेरे मन की बात
✍️ Rajesh Bakode

Monday 25 February 2019

क्या संविधान ने हमे सम्मान से जीने के लिए पैर धोने की व्यस्था दी है?

क्या भारत के संविधान में दलितों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए पैर धौने की व्यवस्था दी गई है? आप संविधान पढ़ेंगे तो पता चलेगा और उसका उत्तर होगा "बिल्कुल भी नही" ! तो फिर दलितों/सामाजिक रूप से बहिष्कृत निचली और पिछड़ी जातियों के सम्मान से जीने के लिए क्या व्यवथा दी गई है! अब प्रश्न यह उठता है कि इन जातियों को ही स्पेशल ट्रीटमेंट की आवश्यकता क्यों महसूस की गई और बाकायदा बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने इसके लिए विशेष संवैधानिक व्यवस्था की! इसके लिए थोड़ा इतिहास में जाने की आवश्यकता है! यह सर्वविदित है कि भारत के इतिहास के प्रारंभिक काल मे सम्राट अशोक के कालखंड में समता मूलक सामाजिक व्यवस्था जहां सब बराबर थे कोई जाति या धर्म नही था न शोषण था, के बाद वैदिक काल में कुछेक शोषकों द्वारा कूटरचित धर्मशास्त्रों की रचना की गई जिसमें भगवान का डर दिखाकर लोगो को आसानी से डराया जा सकता था , इस विचारधारा को मानने वाले लोगों ने महसूस किया कि यदि बिना मेहनत के सीधे में लोगो को डरा धमकाकर यदि अपना पेट आसानी से भर सकता है एवं हमारी पीढ़ियों का उज्जवल भविष्य बनता है तो क्यों न इसी व्यवस्था को पूर्णकालील व्यवस्था बना दिया जाए और इसी व्यवस्था के तहत चतुवर्ण व्यवस्था अपने अस्तित्व में आई जिसमें लोगों को व्यवस्था के अंदर जीने के लिए उनका कार्य विभाजन किया गया, सभी जनमानस जो समान थे बाद में कार्य विभाजन के बाद लोग वर्गों में बंट गए मुख्य रूप से कार्यो का विभाजन चार वर्गों के रूप में किया गया जिसमें ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र थे! इस सामाजिक व्यवस्था के अनुसार ब्राम्हण का कार्य केवल पूजा पाठ करना,एवं धर्म ग्रंथो की शिक्षा देना ,भिक्षा माँगना आदि से अपना गुजारा चलाना था,जबकि क्षत्रिय का कार्य राज्य की सीमा की सुरक्षा,वैश्य का कार्य व्यापार करना जबकि शुद्र को इन तीनो वर्गों की सेवा,साफ सफाई और घृणात्मक कार्य करना जो उपरोक्त तीनों वर्ग में से कोई नही कर सकता था! उपरोक्त अनुसार व्यस्था चलते रही और इन चारों वर्गों में सबसे आसानी से पेट भरकर खाने वाला वर्ग कालांतर में शूद्रों का शोषक वर्ग बन गया क्योंकि इसने ऐसी मन गणन्त्र व्यवस्था बना रखी थी जिसमे शूद्रों को शिक्षा,धन,से दूर रखा और उन्हें केवल अपना गुलाम बनाये रखा उनको डराने का सबसे प्रबल हथियार जो उन्होंने विकसित किया था वह था "धर्म आधारित (शोषक) जाति व्यवस्था" जिसमें सभी जातियों को धर्म और ईश्वर के प्रति डर दिखाकर आसानी से अपना गुलाम बनाया जा सकता था, चूँकि निचली जातियां गुलामी एवं भय में जी रही थी अतः ईश्वर और धर्म का उपयोग कर सबसे ज्यादा इनको ही डराया जा सकता था और डराकर शोषण किया जा सकता था, ये शुद्र वर्ग न केवल शारीरिक गुलाम था बल्कि कालांतर में मानसिक गुलाम भी बन गया और आज भी बना हुआ है। इस धर्म आधारित शोषक व्यवस्था में शुद्र लगभग 5 सदियों से शिक्षा,धन,संसाधनों,न्याय,सामाजिक समानता,सम्मान,से दूर रखा गया और उसके साथ जानवरो से बदतर व्यवहार किया गया! इस शुद्र वर्ग ने शोषण को अपना कर्म और शोषक को अपना ईश्वर मान लिया था और आज भी माने हुए है। लगभग पांच हज़ार सालो तक इनके साथ ऐसी ही गैर बराबरी होते आई और शोषण होते रहा लेकिन इनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए उपरोक्त तीनों वर्गों में से कोई भी वर्ग या कोई भी व्यक्ति इनके साथ खड़ा नही हुआ! पांच हज़ार वर्षो के शोषण के बाद शुद्र वर्ग में एक ऐसे कर्मयोगी का जन्म हुआ जिसने पहली बार सामाजिक तिरस्कार झेलते हुए महसूस किया कि सभी इंसान समान है ,सभी इंसानों का खून का रंग भी लाल है सभी एक जैसे है लेकिन सबके साथ एक जैसा सामाजिक व्यवहार नही होता है ,कोई बिना मेहनत के भी मलाईदार बना हुआ है और कोई जी तोड़ परिश्रम के बाद भी शोषण का शिकार है उन्होंने इसके कारणों का अध्यन किया और पाया कि इसके पीछे का कारण चतुवर्ण आधारित धार्मिक जातिगत व्यवस्था जिम्मेदार है और इसका अंत उसी व्यवस्था को चुनोती देकर दी जा सकती है और उसके लिए पांच हज़ार सालो से लोगो के दिमाग मे सेट व्यस्था को उखाड़ फेकना इतना आसान नही है इसके लिए मेरिट चाहिए, मेरिट के लिए उन्होंने अत्यंत परिश्रम किया गहन अध्ययन किया न केवल देश मे बल्कि विदेशों के नामी गिरामी यूनिवर्सिटी की परीक्षा पास करके अपने आपको सामर्थवान बनाया इसके उपरांत उन्होंने भारत का भाग्य लिखा जिसे हम " भारत का संविधान " कहते है। इस महान विचारक, लेखक,शिक्षाविद,सामाजिक चिंतक,अर्थशास्त्री, इंजीनियर,समाजशास्त्री,राजनीतिज्ञ,कानूनविद,और बाद में भारतरत्न कहलाए वे थे डॉ भीमराव आंबेडकर जिन्हें प्यार से "बाबा साहेब" भी कहा जाता है । उन्होंने पाँच हज़ार साल तक हुए शोषण के शिकार शोषितों,वंचितों,दबे कुचलो,महिलाओं के लिए लिखित समानता आधारित भारत के संविधान में लिपिबद्ध करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था दी! जिसमे भारत के प्रत्येक नागरिकों के लिए मूल अधिकार दिए (भारत का संविधान भाग 3 अनुच्छेद 14 से 30) जबकि शूद्रों (अनुसूचित जाति और जनजाति) के लिए भारत के संविधान में पाँचवी अनुसूची (भाग 10 अनुच्छेद 244) अनुसूचित और जनजाति क्षेत्रो में प्रशासन की व्यस्था की गई! भारत के संविधान में प्रदत्त मूल अधिकार भारत के सभी नागरिको पर लागू होते है एवं इन अधिकारों से भारत के प्रत्येक नागरिक को समता का अधिकार(अनुच्छेद 14-18),स्वत्रंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22),शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24),धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार(25-28),संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30) में सभी नागरिकों को विधि के संगत न्याय की व्यवस्था दी गई ! धर्म,मूलवंश,जाति,लिंग या जन्मस्थान के आधार पर लोगों से विभेद नही किया जा सकता था! नोकरियों के विषय मे समानता के अवसर का प्रावधान था,छुआछूत को निषिद्ध किया गया था, बोलने की आज़ादी / अभिव्यक्ति की आज़ादी दी गयी!मानव के साथ कोई दुर्व्यापार न करे,कोई बलात श्रम न करा पाए,कारखानों में बालको के नियोजन का प्रतिषेद किया गया,लोगो को अपने हिसाब से धर्म की स्वत्रन्त्रता दी गई वह धर्म माने अथवा न माने,या कोई भी धर्म माने!अल्पसंख्यक के हितों का संरक्षण ,शिक्षा के अधिकार दिए गए! उपरोक्त सभी अधिकार "26 जनवरी 1950"  को "भारत के संविधान" के अस्तित्व में आने के साथ ही सभी नागरिकों को मुफ्त में मिल गए! बस यही कारण था कि भारत के संविधान के लागू होते ही उन सभी नागरिकों को समानता के अधिकार मिले जो सम्राट अशोक के काल से लेकर संविधान लागू होने के पहले तक रोककर रखे गए थे, इसकी जद में सभी नागरिक थे तो स्वाभाविक है इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति भी आई जिनका शोषण पांच हज़ार सालो से होता आया था ! यही वजह रही कि वेदों में लिखी कूटरचित और शोषणकारी नीतियों का खुलकर विरोध हुआ और संविधान में दिए अधिकारो से दबे कुचले समाज,अनुसूचित जाति जनजाति  और महिलाओं को सामाजिक समानता मिली, नोकरी के अवसरों में समानता मिली ,वह शिक्षा एक अधिकार मिला जो उनसे छीना जा चूका था शिक्षा के अधिकार पाते ही वंचित वर्ग शिक्षित और प्रबुद्ध हुआ फलस्वरूप उसमें भी नेतृत्व क्षमता विकसित हुई अब महिलाएं भी शासन और प्रशासन चला सकती थी ! वाक- स्वत्रंतता मिली जिस कारण वंचित शोषण के खिलाफ बोल सकते थे ! केवल जाति और धर्म देखकर दिए जाने वाले न्याय की जगह सभी को समान न्याय मिलने लगा, छुआछूत निषिद्ध और असंवैधानिक करार दिया गया! स्पष्ट है कि संविधान में वंचितों,दबे कुचलों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए के लिए जो संवैधानिक प्रावधान किए गए है उनमें उपरोक्त प्रावधान शामिल है न कि इन वर्गों के पैर धोना! इस प्रकार हम पाते है कि संवैधानिक प्रावधान वे कारण थे जिसने "धर्म आधारित जाति आधारित शोषक वर्ण व्यस्था" और उनके प्रशासकों की चूले हिला कर रख दी थी! वो इस बात से भयभीत हो गए कि हमारी शोषण आधारित ,धर्म आधारित , चतुर्वर्ण व्यस्था को यह भारत का संविधान न केवल चुनौती दे रहा अपितु हमारी षणयंत्र पूर्वक रचित व्यवस्था को नष्ट करने में तुला हुआ है! अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए इस शोषण व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इसके प्रशासको ने वही धर्म आधारित व्यवस्था "मनुस्मृति"  की पुरजोर वकालत करते आ रहे है ! इसी का परिणाम है कि इन्होंने इसी वर्ष दिल्ली में भारत का संविधान जलाया और सबसे बड़ा देशद्रोह किया परंतु इनके ही काका-मामा शासन प्रशासन और न्यायपालिका में है इसलिए ये देशद्रोहीयो पर कोई कार्यवाही नही हुई और आज भी बेख़ौफ़ होकर घूम रहे है। चूंकि "भारत के संविधान" को एकदम से नष्ट करने पर भूचाल आ जायेगा इसलिए ये शोषक धीरे धीरे अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए किए गए विशेष प्रावधान जैसे कि आरक्षण खत्म करना,गैरसंवैधानिक तरीके से आर्थिक आधार पर आरक्षण देना,पदोन्नति में आरक्षण खत्म करना, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को नष्ट करने की कोशिश करना, 200 पॉइंट पोस्टर सिस्टम को खत्म कर 13 पॉइंट रोस्टर सिस्टम लागू करना! ये संविधान में प्रदत्त उन शक्तियों को ही नष्ट कर देना चाहते है जिसके कारण वंचित को समान स्तर पर जीने की सामाजिक व्यवस्था बनाई गई है। जब संविधान के वे मुख्य प्रयोजन धीरे धीरे नष्ट कर दिए जाएंगे जिनसे दलितों, वंचितों महिलाओं को विशेष ट्रीटमेंट देकर समता मूलक समाज की कल्पना कि गई है तो वह संविधान किस काम का बचेगा? यही षणयंत्र धीरे धीरे संविधान की आत्मा को चोट पहुचा रहा है और अंदर से खोखला कर रहा है ,ये देश फिर से उसी पांच हज़ार साल पहले जाने की ओर अग्रसर है जहाँ गैर बराबरी, शोषण,अन्याय,अत्याचार,छुआछूत,गुलामी,कायम की जा सके, यदि समय रहते देश का मूलनिवासी ST/SC/OBC/minority का 80% जनसंख्या वाला तबका जागरूक नही हुआ तो देश मे शीघ्र ही "लोकतांत्रिक व्यस्था" खत्म हो जावेगी एवं तानाशाही "मनुस्मृति व्यवथा" लागू कर दी जावेगी जहाँ पूर्व की भांति, शोषण,अत्याचार,गुलामी,छुआछूत,ग़ैरबराबरी,गरीबी,सामाजिक त्रिस्कार का बोलबाला होगा जहाँ बुद्धिजीवी,शिक्षविद, वैज्ञानिक,इंजीनियर,वकील,डॉ को फांसी चढ़ा दी जाएगी केवल धार्मिक उन्मादियों को जीने की स्वतंत्रता होगी विज्ञान और तकनीकी अपनी अंतिम सांसे गिनेगी।
उपरोक्त अनुसार स्पष्ट है इस देश मे वंचितों, दलितों,गरीबो से हमदर्दी दिखाने के लिए इन वर्गों की आरती उतारने की जरूरत है न ही पैर धौने के जरूरत है क्योंकि ये असंवैधानिक प्रक्रिया है अगर आपको इन वंचितों का वास्तविक सम्मान करना है तो आप उन्हें अवसरों की समानता दीजिए! नोकरी दीजिए! उनसे जाति ,धर्म,लिंग,सम्प्रदाय के आधार पर शिक्षा,धन, जल,जंगल जमीन संसाधन मत छीनिए! आपको उनके न पैर धौने की जरूरत है न पैर पकड़ने की क्योंकि भारत के संविधान में इन वर्गों के सम्मान के लिए ऑलरेडी संवैधानिक उपचार दिए गए है जरूरत है केवल लागू करने की, इसलिए पैर मत धोइये बल्कि  जरूरत है केवल उनको संवैधानिक प्रावधान को हूबहू लागू कराने की! यही उनका वास्तविक सम्मान होगा फालतू के ढोंग छोड़िए ये देश कर्मकांडो और अंधविश्वास से नही चलता ये देश दुनिया के सबसे ताकतवर संविधान से चलता है, आज जरूरत है इस संविधान को बचाने की आओ मूलनिवासियों/ बहुजनों हम देश को बचाने का प्रण ले।
✍ लेखक: राजेश बकोड़े
     सोशल थिंकर,B.Sc.,M.Sc.,MSW

Monday 7 January 2019

आरक्षण : 10% सवर्णों के संदर्भ में

अब आरक्षण को समझने में बहुत मज़ा आने वाला है अब शायद लोगो के मन मे जो गलत फहमियां थी वह सामान्य वर्ग को मिलने वाले 10% आरक्षण के साथ ही समझ आने लगी है ! अब मज़ा यह आने वाला है कि लोग इसके प्रति सोचने को मजबूर होंगे ही कि किस आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए ? सामान्यतः भारत के संविधान का मूल उद्देश्य सभी वर्गों के हितों की रक्षा के साथ ही उन्हें समता मूलक समाज की ओर बढाना, जहाँ जाति, धर्म,लिंग,वर्ग,में विभेद न हो सबको समान अवसर मिले, सबको सम्मान और अमीरी गरीबी की गहरी खाई मिटकर सबका स्तर एकसमान हो ! अब लोग यह सोचने जरूर मजबूर होंगे कि हमारी जनसँख्या के अनुपात में क्या हमें उतना मिला जितने के हम हिस्सेदार थे? मतलब अगर हमारा समाज 3% है तो क्या 3% का लाभ सरकारी नोकरियो में, देश के संसाधनों में,या देश की आय में शामिल है ठीक ऐसे ही 14% और 52%  जनसँख्या वालो के लिए लागू होता है, सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण मिलने के साथ अब समझ आएगा लोगो को की हम आरक्षण के लिए कोसते किसे थे और कोसना किसे चाहिए था, सरल शब्दो मे समझिए ST/SC/OBC/minority  इन सबको मिलाकर कुल जनसंख्या होती है 85% और आरक्षण मिल रहा है ST को 7.5%, SC को 14% इनकी जनसँख्या भी क्रमशः इतनी ही है 7.5% और 14% , एवं OBC को मिलता है 27% परंतु इनकी जनसंख्या है 52% जबकि ये वर्ग अल्पसंख्यक और कुछेक पिछडो को मिलाकर 60%से भी ज्यादा जनसँख्या का प्रतिनिधित्व करते है ! मतलब यह कि ST/SC/OBC/Minority की कुल 85% जनसंख्या कुल आरक्षण ले रही है 49.5% ! मतलब भारत का बहुसंख्यक वर्ग इन तीनो को मिलाकर कुल जनसंख्या का 85% होता है तो आरक्षण और देश के संसाधनों पर देश की आय पर,देश की कुल सरकारी और प्राइवेट नोकरियो पर इनका 85% हक होना चाहिए लेकिन इन्हें मिल रहा केवल 49.5% ! तो सवाल अब जेहन में ये उठ रहा है कि बाकी 50.5% आरक्षण कौन खा रहा है तो इसका जबाब है 85% लोगो (ST/SC/OBC)को छोड़कर जो 15% बचते है वो! और ये 15% कौन है ? ये 15% जनसँख्या वो है जो ST / ST/ OBC नही है मतलब सामान्य वर्ग! सामान्य वर्ग की कुल जनसंख्या भारत मे 15% है ! अब बात करते है आरक्षण की तो देश की 85% जनता तो 49.5%आरक्षण ले रही है लेकिन बाकी का बचा 50.5% ये 15% जनसंख्या ले रही है ! अब सरकार सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण देना चाहती है तो सामान्य वर्ग को ज्यादा खुश होने की जरूरत नही है क्योंकि सामान्य वर्ग में जातिगत देखा जाए तो केवल 3% लोग ही सवर्ण है बाकी के 12% लोग क्षत्रिय,राजपूत जैन और कुछ तथाकथित अगड़ी जातियां है लेकिन इनके साथ मुसीबत यह आ गयी है कि केवल 3% सवर्णों ने उन 12% लोगो का हक भी मार रखा है, क्योंकि जो 12% जनसँख्या का हक है वो भी 3% लोग ही खा रहे है अब सर मुंडाते ही ओले तो तब पड़ गए जब सरकार सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण देने के लिए तैयार है ! जबकि विडंबना यह है कि इनकी कुल जनसंख्या 15% है तो आरक्षण भी 15% मिलना चाहिए लेकिन सरकार 10% का लॉलीपॉप देना चाहती है इसमें सवर्णों में भी जो बहुसंख्यक जातियां है उनका हक मारा जा रहा है इनको कुल मिलाकर 15% आरक्षण मिलना था! सामान्य वर्ग को 15% आरक्षण इनका अधिकार है ये इनको मिलना ही चाहिये और इस बात का समर्थन सभी बहुसंख्यक वर्ग मतलब सभी St/sc/obc को करना चाहिए! अब वर्तमान में स्थिति यह है कि इस 15% सामान्य वर्ग में केवल 3% जनसँख्या वाला वर्ग पूरा 50.5% आरक्षण का मज़े लेकर सबसे ज्यादा मलाई मार रहा है क्योंकि 85% जनसँख्या तो केवल 49.5% आरक्षण लेकर ही खुश है! वैसे इन 85% आबादी वाली जनसँख्या में अपने अधिकारों को लेकर सबसे ज्यादा सजग वर्ग ST और SC है क्योंकि इनकी जितनी जनसँख्या है क्रमश 7.5% और 14% तो इनको आरक्षण भी उतना ही मिल रहा है क्रमशः 7.5% और 14% सबसे बड़ी समस्या है OBC के साथ ये जनसँख्या में 52% होता है लेकिन इनको मिल रहा केवल 27% ! और इनको लगता है कि देश आरक्षण की वहज से बर्बाद हो रहा है इनको यह समझने की जरूरत है कि आज आरक्षण को भीख कहने वाला सामान्य वर्ग भी 10% मिलने वाले आरक्षण को अपना अधिकार कहता है लेकिन ये OBC जिसको देश के संसाधनों में 52% हिस्सदारी मिलना था के लिए लड़ना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य देखिए ये 3% सवर्णों के सबसे बड़े समर्थक है जबकि इनका हिस्सा और सामान्य वर्ग की कुछ जातियों का हिस्सा ये 3% वाला ही चट कर रहा है , उस 3% ने बड़ी चालाकी से इनको धर्म रक्षक बना दिया है इनको 10-10₹ के भगवा गमछा देकर धर्म की रक्षा में झोंक दिया है! ये धर्म रक्षा में इतना उलझा हुआ है कि इसे इस बात का पता ही नही है कि मेरी वर्तमान स्थिति क्या है देश के 52% संसाधन मुझे मिले क्या? क्या मेरा वर्ग देश की कुल सरकारी पदों पर 52% नोकरिया हासिल है? क्या मेरी संताने बेरोजगार नही हो रही है? क्या देश की शिक्षा में निजीकरण होने के कारण मेरी पीढियो को अच्छी शिक्षा मिल पाएगी? क्योंकि सरकारी शिक्षा के संस्थानों को खत्म किया जा रहा है और निजी शिक्षा के संस्थानों को बढ़ावा दिया जा रहा है,इनकी शिक्षा बहुत महंगी है मेरा वर्ग पहले से ही आरक्षण से विमुक्त है , संसाधनों से विमुक्त है,बेरोजगारी ढो रहा है, लेकिन हमें क्या करना है !  हमे क्यो सोचना की हमारा हक कौन खा रहा है और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य और कितना भयावय होगा? इस बात पर चिंतन करना होगा ST  और SC को उनकी जनसँख्या के अनुपात में आरक्षण मिल रहा है केवल OBC को उसका वाजिब हिस्सा नही मिल पा रहा है इसके लिए ओबीसी को लड़ना होगा उसे समय रहते जागना होगा,और इनकी इस लड़ाई में सारे St और Sc को साथ देना चाहिए,लेकिन ओबीसी मानता है हमे क्या करना हमे तो बस एक ही नारा  "मंदिर वही बनेगा"  "गर्व से कहो हम हिन्दू है "
बोलो जय श्री राम !

✍ लेखक: राजेश बकोड़े

Tuesday 27 November 2018

ईश्वर की रचना किसने की?


ईश्वर की रचना इंसान ने की , दरसल ईश्वर होता ही नही,होता तो दिखता! आज तक किसी भी व्यक्ति ने साक्षात यानी 2 पैर 2 हाथ 2 आँख सहित ऐसा कोई सर्वशक्तिमान नही देखा जिसे ईश्वर कहा जा सके,न ही कोई आधुनिक मशीन ने ईश्वर के अस्तित्व को डिटेक्ट किया है । ऐसे कोई सबूत है नही जो सिद्ध कर सके कि ईश्वर है। अब मुख्य सवाल यह है कि फिर ईश्वर की अवधारणा कैसे आ गयी और इतनी ज्यादा क्यों पॉपुलर हुई जबकि इतना तो कोई आधुनिक तकनीकी भी पॉपुलर नही हो पाई है ! इसे समझने चलते है इसके पीछे के इतिहास में! इस दुनिया मे जब मानव का।विकास हुआ ( मानव का विकास ही हुआ है मनुष्य कभी मनुष्य ही पैदा नही हुआ था जैसा कि धार्मिक ग्रंथो में बताया गया है) तब वह उतने विकसित दिमाग के साथ अस्तित्व में नही था ,उसके विकास की प्रक्रिया निरन्तर चालू थी, आज भी चालू है विकाश एक न खत्म होने वाली प्रक्रिया है ! उस दौर में प्रकृति में होने वाली प्राकृतिक घटनाओं जैसे वर्षा, तूफान,भूकंप,ज्वालामुखी,बिजली आदि घटित होने का उचित कारण पता नही था और वह इन घटनाओं से अनसिक्योर्ड हुआ करता था, और हमेशा से ही इन घटनाओं के डर से आशंकित हुआ करता था! तब उन्हें स्वमेव यह महसूस हुआ कि इन घटनाओं के पीछे किसी का हाथ है लेकिन वह व्यक्ति अदृश्य है बस उसी अदृश्य शक्ति के डर से बाहर निकलने के लिए उसे मनाने के लिए पूजा पाठ का चलन चालू हुआ ,उसी दौरान अन्य दृश्य शक्तियां जैसे सूर्य,वायु , जल आदि की भी पूजा चालू हो गयी,सदियों तक इनकी ही पूजा होते आई, धीरे धीरे इंसान कबीलो के बड़े होने के साथ ही बड़े बड़े राज्यो में रहने लगा । अब राज्यो के अस्तित्व में आने के साथ ही बहुत सारी चीजे व्यवस्थित कार्यप्रणाली के अनुसार होने लगी जैसे प्रशासन,नीतियां,मनोरंजन,व्यापार,आदि आदि! इसी दौरान घटनाओं के घटित होने के उचित कारण पता नही होने से अंधविश्वास के कारण नए नए ईश्वर जन्म लेने लगे जो कि काल्पनिक घटनाये मात्र थी किसी व्यक्ति ने देखा नही था,परंतु राजा महाराजाओं को प्रसन्न करने और ज्यादा धन के लालच में उनके कवियों/चारणों/भाटों ने उनकी अतिशयोक्तिपूर्ण प्रसंशा की,उन्हें शक्तिशाली बताया और इस तरह उस राजा को एक अदृश्य ईश्वर के समतुल्य माना ,कालांतर में मनोरंजन के लिए और राजा की अतिशयोक्ति के ये ग्रंथ यानी पौराणिक ग्रंथ को इतिहास की तरह और हर बार नए तरीके से बखान करने लिखने के क्रम में कई परिवर्तन आये और अंततः उसी झूठ को बिना लॉजिक लगाए आज हम अन्धविश्वास के सर्वोच्च रूप को ईश्वर कहते है । ईश्वर को आदिमानव काल मे केवल हवा, पानी,बिजली,सूर्य,चंद्रमा,आदि के रूप में माना जाता था,आधुनिक ईश्वर की उत्पति मानव विकास के आधुनिक इतिहास काल के दौरान हुई है जब कुछ चालक लोगो द्वारा मनोरंजन के लिए लिखे गए और अपने राजा की अतिशयोक्तिपूर्ण शक्तियों वाले ग्रंथो को इतिहास बताने की कोशिश शुरू हुई और यह वही दौर है जब नए नए ईश्वर अस्तित्त्व में आये! जबकि आज के दौर में घटना के पीछे का कारण विज्ञान की उन्नत तकनीक से स्पष्ट किया जा रहा है और निरंतर खोज चालू है,बहुतो के जबाब मिल गए अनेको के जबाब बाकी है…खोजे चलती रहेंगी, जिस तरह विज्ञान की हर थ्योरी को 100% हर पहलू से परखने / परीक्षा से गुजरने के बाद रिजल्ट के रूप में सत्य प्राप्त होता है ,ठीक वैसे ही जैसे जैसे शिक्षा का लेवल / तकनीकी/विज्ञान प्रगति करते जाएगा,विज्ञान ईश्वर और झूठे धर्म के पुलिंदों ( धर्म ग्रंथो) का अस्तित्व खत्म होते जाएगा!

✍ लेखक: राजेश बकोड़े

Friday 26 October 2018

करवा चौथ

:: करवा चौथ ::
सभी वर्ग के 26703 व्यक्ति प्रति दिन भारत मे विभिन्न कारणों से मरते है माना पुरुष वर्ग से आधे मरते होंगे इसका मतलब 13351.5 महिलाएं प्रति दिन विधवा होती होंगी!

जबकि भारत मे अपने पतियों की लंबी आयु हेतु महिलाएं करवा चौथ व्रत रखती है तो क्या करवा चौथ के दिन एक भी पुरुष नही मरते? और अगर मरते है तो व्रत रखने से पति की लंबी आयु होने पर संदेह होना चाहिए या नही।

पर इसका साधारण सा उत्तर है आप किसी की आस्था  पर उंगली नही उठा सकते! जहाँ आस्था शब्द आ जाता है वहाँ विज्ञान पढ़ी लिखी महिलाओं की बुद्धि भी घास चरने चली जाती है 😊😊😊
✍ राजेश बकोड़े